पी.बी.आई. का उद्देश्य
पी.बी.आई. वैचारिक और आदर्शनिष्ठ पार्टी है। यह देश की राजनीति में एक नई शुरुआत है। नैतिकता को पी.बी.आई. राजनीति में भाग लेने वालों की न्यूनतम योग्यता मानता है। राजनीति अनैतिकों की सैरगाह नहीं होनी चाहिए।
पी.बी.आई. का संकल्प है देश में 1) नैतिक नेतृत्व और 2) विकेन्द्रित अर्थव्यवस्था की स्थापना करना।
नैतिक नेतृत्व : आज देश और समाज में जितनी भी समस्याएँ हैं उसके लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से नेता ही जिम्मेदार हैं। दोषपूर्ण नेतृत्व के कारण आज देश तबाही के कगार पर खड़ा है। आज राजनीति में अनैतिक और भ्रष्ट नेताओं का प्रभाव इतना बढ़ गया है कि नेता होना भ्रष्ट होने का पर्यायवाची बन गया है। राजनीति धनबल, बाहुबल,परिवारवाद तथा जाति और संप्रदाय के समीकरणों का खेल बन कर रह गई है; नैतिकता, चरित्र और आदर्श की बात करना मूर्खता समझी जाती है। इसलिए ज्यादातर लोग राजनीति के प्रति उदासीन हो गए हैं और उनमें सामाजिकतथा अर्थनैतिक जागरूकता का भी अभाव है।
इन निराशाजनक परिस्थितियों में पी.बी.आई. ने नैतिकता पर आधारित राजनीति की स्थापना का संकल्प लिया है। पी.बी.आई. चाहता है कि राजनीति सिर्फ नैतिक व्यक्तियों का ही कार्यक्षेत्र हो और इसमें अनैतिक लोगों का प्रवेश कानूनी रूप से प्रतिबंधित होना चाहिए। पी.बी.आई के अनुसार एक आदर्श नेता को व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में व्यवहार के कुछ निश्चित सार्वभौमिक नैतिक नियमों का पालन अनिवार्य रूप से करना चाहिए। दुखी मानवता के प्रति निश्छल प्रेम तथा कथनी और करनी में समानता उसके न्यूनतम अनिवार्य गुण होने चाहिए। इसलिए हालाँकि कोई भी देशवासी पी.बी.आई, का प्राथमिक सदस्य बन सकता है, लेकिन सक्रिय सदस्य बनने के लिए उसे कुछ शर्तों का पालन करना होगा।
विकेन्द्रित अर्थव्यवस्था : पी.बी.आई. का मानना है कि गरीबी, बेरोजगारी, मंदी, महंगाई, भ्रष्टाचार, बढ़ते अपराध,आतंकवाद, महिलाओं के शोषण, पर्यावरण असंतुलन, अपसंस्कृति आदि के लिए अनैतिक नेताओं द्वारा पोषितपूँजीवादी अर्थव्यवस्था ही ज़िम्मेदार है। आज 18 साल का होते ही प्रत्येक व्यक्ति को वोट देने का अधिकार तो मिल जाता है, परन्तु रोजगार का नहीं; रोटी, कपड़ा, मकान, चिकित्सा और शिक्षा जैसी न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति की कोई गारंटी नहीं है। 50 प्रतिशत देशवासी दिनभर में 50 रुपये भी नहीं कमा पाते हैं; अन्नदाता किसान आत्महत्या कर रहा है और मज़दूर का भरपूर शोषण हो रहा है। ज्यादातर आबादी की क्रयशक्ति खत्म हो जाने के कारण देश भारी मंदी की चपेट में है। मंदी और विदेशी सामान की बिक्री की दोहरी मार से छोटे–छोटे ही नहीं बल्कि सैकड़ों बड़े उद्द्योग भी बंद हो गए, जिसकी वजह से बेरोजगारी में भारी बढ़ोतरी हुई है। शोषित और पीड़ित अपढ़ लोग ही नहीं बल्कि पढ़े–लिखे युवा भी अच्छे अवसरों के अभाव में अपराध और आतंकवाद की ओर बढ़ रहे हैं। वहीँ देश के एक प्रतिशत धनी लोग देश की 50 प्रतिशत सम्पदा के स्वामी हैं।
इन परिस्थितियों में पी.बी.आई. प्रत्येक व्यक्ति को न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति की संवैधानिक गारंटी देना चाहता है, और रोजगार के अधिकार को मौलिक अधिकार बनाना चाहता है, ताकि सबके पास क्रयशक्ति हो और हमें गरीबी रेखा की आवश्यकता ही नहीं रहे। साथ ही मौजूदा आर्थिक विषमता को खत्म करने के लिए पी.बी.आई. ‘अमीरी रेखा‘ लाना चाहता है, अर्थात धन–संग्रह की एक अधिकतम सीमा सुनिश्चित कर सीमित भौतिक संसाधनों की बन्दर बाँट ख़त्म करना चाहता है। गरीबी रेखा का अर्थव्यवस्था में कोई प्रावधान ही नहीं होना चाहिए।
न्यूनतम और अधिकतम सम्पत्ति की सीमा निर्धारित करने के अलावा कृषि को उद्द्योग का दर्जा देकर, कृषि, उद्द्योग,वाणिज्य, व्यापार आदि को विकेन्द्रित ढंग से पुनर्गठित करना भी पी.बी.आई. का उद्देश्य है।